उत्तराखंड उत्तरकाशीuttarakhand gartangali is open now

उत्तराखंड में पेशावर के पठानों ने बनाया था ये खतरनाक रास्ता, अब आप भी कीजिए सफर

दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में से एक रास्ता उत्तराखंड में भी है। पहाड़ को काटकर बनाया गया ये रास्ता पठानों ने बनाया था। अब ये आपके लिए खुल गया है।

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Image: uttarakhand gartangali is open now (Source: Social Media)

उत्तरकाशी: रोमांच के शौकीनों के लिए उत्तरकाशी एक बेहतरीन विकल्प है। अगर आप रोमांच के लिए अपने डर से भी मुकाबला कर सकते है तो उत्तरकाशी का रुख जरुर करें। यहां के एतिहासिक गर्तांगली में कदम रखते ही आपको इंसान की कारीगरी और हिम्मत की जो मिसाल देखने को मिलेगी वो भारत के किसी भी हिस्से में देखने को नहीं मिलेगी। कहते हैं कि इंसान अगर ठान ले तो वो पहाड़ का भी सीना चीरने का दमखम रखता है और यही देखने को मिलेगा आपको गर्तागली में। उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है गर्तांगली दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार है। किसी दौर में इस रास्ते से गुजरकर भारत-तिब्बत के बीच व्यापार हुआ करता था। भारत-चीन सीमा पर जाड़ गंगा घाटी में स्थित सीढ़ीनुमा ये मार्ग वास्तु का अद्भुत नमूना है।

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अब सवाल ये है कि इस रास्ते का 17वीं सदी से क्या संबंध है। कहा जाता है कि करीब 300 मीटर लंबे इस रास्ते को 17वीं सदी में पेशावर से आए पठानों ने चट्टान को काटकर बनाया था। इस रास्ते के जरिए भारत और चीन के बीच व्यापार भी होता था। लेकिन 1962 में दोनों के बीच हुए युद्ध ने सब कुछ बदलकर रख दिया और ये रास्ता कारोबार के लिए बंद कर दिया गया। बता दें कि गर्तागली के जरिए ऊन, चमड़े से बने कपड़े और नमक लेकर तिब्बत से बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) पहुंचा जाता था। बाड़ाहाट का अर्थ है बड़ा बाज़ार। उस वक्त दूर दूर से लोग बाड़ाहाट आते थे और सामान खरीदते थे। 1975 में सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया। तब से लेकर इस रास्ते में सन्नाटा पसरा हुआ था। एक लंबे अस्से के बाद 2017 में विश्व पर्यटन दिवस के मौके पर उत्तराखंड सरकार की ओर से पर्यटकों को गर्तांगली जाने की अनुमति दी गई।

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इसी कड़ी में गुरुवार सुबह 25 पर्यटक जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 90 किमी गंगोत्री की ओर भैरवघाटी स्थित लंका पहुंचे। यहां से खड़ी चट्टानों के बीच होकर ढाई किमी की पैदल ट्रैकिंग गर्तांगली के लिए शुरू हुई। गर्तांगली पहुंचने पर पर्यटकों ने इंसानी कारीगरी का जो नमूना देखा उसने उन्हें एहसास कराया कि कैसे कभी इस जोखिमभरे रास्ते से दो देशों के बीच कारोबार हुआ करता था। वेयर ईगल डेयर ट्रैकिंग संस्था के संचालक तिलक सोनी ने कहा कि गर्तांगली हमारी एक एतिहासिक धरोहर है। तो अगर आप भी एडवेंचर, प्रकृति की खुबसूरती और इंसानी कारीगरी को महसूस करना चाहते है तो गर्तागली आइए। जहां पहाड़ों को चीर कर लकड़ी के बने रास्ते से गुजरना अपने आप में एक अलग एहसास है। जिसमें हिम्मत, जूनुन और थोड़ा सा डर एक साथ जे़हन में आते है।