उत्तराखंड history of bagheshwar temple uttarakhand

देवभूमि के बागेश्वर महादेव..भगवान शिव गणों ने बनाई ये जगह, यहां रक्षक हैं भैरवनाथ!

देवभूमि उत्तराखंड में एक नगरी ऐसी भी है, जिसे भगवान शिव के गणों ने तैयार किया। कहा जाता है कि भगवान शिव की सबसे प्यारी जगहों में से ये जगह है।

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Image: history of bagheshwar temple uttarakhand (Source: Social Media)

: जिस नगरी को भगवान शिव के गणों ने बनाया हो और जिसके द्वारपाल ही भेरवनाथ हों...जरा सोचिए उस नगरी का महत्व क्या होगा। उत्तराखंड में आपको कदम कदम पर ऐसे चमत्कार मिलेंगे, जिनके बारे में आप कल्पना भी नहीं कर सकते। आज हम आपको एक ऐसे धाम के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि ये धाम महादेव शिव को काफी प्रिय है। उत्तराखंड में गोमती, सरयू नदी के संगम पर स्थित है बागेश्वर का बागनाथ मंदिर। बताया जाता है कि बाबा कालभैरव इस मंदिर में द्वारपाल रूप में निवास करते हैं और यहीं से पूरी दुनिया पर नजर रखते हैं। शिव पुराण के मानस खंड के अनुसार बागेश्वर को शिव के गण चंडीश ने बसाया था। कहा जाता है कि महादेव की इच्छा के बाद ही इस नगर को बसाया गया था। चंडीश द्वारा बसाया गया नगर महादेव शिव को बहुत भाया।

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बागेश्वर को मार्कण्डेय ऋषि की तपोभूमि भी कहा जाता है। पुराणों में लिखा गया है कि अनादिकाल में मुनि वशिष्ठ अपने कठोर तपबल से ब्रह्मा के कमंडल से निकली मां सरयू को ला रहे थे। इस जगह पर ब्रह्मकपाली के पास मार्कण्डेय ऋषि तपस्या में लीन थे। इस वजह से वशिष्ट जी सरयू को आगे नहीं ले जा पा रहे थे। वशिष्ट जी को मार्केण्डेय ऋषि की तपस्या के भंग होने का खतरा सताने लगा। सरयू के अपार जल से धीरे धीरे वहां जल भराव होने लगा क्योंकि सरयू नदी आगे नहीं बढ़ सकी। ऐसे में वशिष्ठ जी ने शिवजी की आराधना की। महादेव ने इसके लिए एक निराली चाल चली। उन्होंने बाघ का रूप रख कर माता पार्वती को गाय बना दिया। कहा जाता है कि महादेव ने ब्रह्मकपाली के पास गाय पर झपटने का प्रयास किया। गाय के रंभाने से मार्कण्डेय ऋषि की आंखें खुल गई। इसके बाद ऋषि बाघ को गाय से मुक्त कराने के लिए दौड़े तो बाघ ने महादेव और गाय ने माता पार्वती का रूप धर दिया।

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मार्कण्डेय ऋषि को दर्शन देकर इच्छित वर दिया और मुनि वशिष्ठ को आशीर्वाद दिया। इसके बाद सरयू आगे बढ़ सकी। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि भगवान शंकर यहां बाघ रूप में निवास करते थे। पहले इस जगह को व्याघ्रेश्वर नाम से जाना गया। बाद में ये बागेश्वर हो गया। बागनाथ मंदिर को चंद्र वंशी राजा लक्ष्मी चंद ने 1602 में बनाया था। मंदिर के नजदीक बाणेश्वर मंदिर है। ये मंदिर भी वास्तु कला की दृष्टि से बागनाथ मंदिर के समकालीन लगता है। इसके पास में ही भैरवनाथ का मंदिर बना है। बागनाथ मंदिर में मुख्य रूप से बेलपत्र से ही पूजा होती है। यहां कुमकुम, चंदन और बताशे चढ़ाने की भी परंपरा है। हर साल इस मंदिर में लाखों भक्त महादेव के बाघ रूप के दर्शनों के लिए आते हैं।