उत्तराखंड story of kashi vishwanath temple uttarkashi

उत्तराखंड में ‘भगवान शिव’ का वो प्रिय स्थान, जहां ‘त्रिशूल रूप’ में विराजमान हैं मां दुर्गा !

उत्तराखंड का एक ऐसा मंंदिर जिसकी तुलना वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर से की जाती है। कहा जाता है कि इस मंदिर और काशी विश्वनाथ के दर्शन करना एक जैसा है।

uttarkashi: story of kashi vishwanath temple uttarkashi
Image: story of kashi vishwanath temple uttarkashi (Source: Social Media)

: उत्तराखंड की पवित्र धरा में आपको कदम कदम पर चमत्कारों का नजारा ही दिखेगा। अपने में ना जाने कितनी परंपराओं, कितनी संंस्कृति और कितनी सभ्यताओं को बसाए हुए है ये पवित्र देवभूमि। इसलिए दुनिया बार बार इस भूमि को प्रणाम करती है। आज हम आपको उत्तराखंड के एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि कहा जाता है कि इसके दर्शन मात्र से ही वाराणसी के काशी विश्वनाथ के बराबर दर्शन पाने का सुख मिलता है। इस मंदिर की सबसे खास बात है यहां मौजूद मां पार्वती का मंदिर। काशी विश्वनाथ मंदिर के ठीक सामने मां पार्वती त्रिशूल रूप में विराजमान है। कहा जाता है कि राक्षस महिषासुर का वध करने के बाद मां दुर्गा ने अपना त्रिशूल धरती पर फेंका था। ये त्रिशूल यहीं आकर गिरा था। इस त्रिशूल की कुछ हैरान कर देने वाली बातें भी जानिए।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढें - देवभूमि में हिंदुस्तान का सबसे पुराना वृक्ष, जिसकी उम्र 2500 साल है
तब से इस स्थान पर माँ दुर्गा की शक्ति स्तम्भ के रूप में पूजा की जाती है। यहां जो त्रिशूल मौजूद है, वो पूरा जोर लगाने के बाद भी नहीं हिलता। बस हाथ की सबसे छोटी उंगली से छू लेने पर ये त्रिशूल हिलने लगता है। इसके पीछे रिसर्च करते हुए वैज्ञानिकों ने भी हार मान ली। ये त्रिशूल 8 फुट लंबा और 9 इंच मोटा है। भारत में यूं तो तीन काशी प्रसिद्ध हैं। एक काशी वाराणसी वाली काशी है। तो दो काशी उत्तराखंड में हैं। पहला है उत्तरकाशी और दूसरा है गुप्तकाशी। गुप्तकाशी के बारे में हम आपको इससे पहले बता चुके हैं। आज हम आपको उत्तरकाशी और यहां के महात्म्य के बारे में बताने जा रहे हैं। इसका सबसे बड़ा प्रमाण है उत्तरकाशी में भगवान् शिव का विराजमान होना। जी हां भगवान भोलेनाथ यहां काशी विश्वनाथ के रूप में विराजमान हैं। उत्तरकाशी मां भागीरथी के तट पर मौजूद है।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढें - देवभूमि के भगवान वंशीनारायण, जहां साल में सिर्फ एक बार खुलते हैं कपाट..जानिए क्यों?
इस नगर के बीचों बीच महादेव का अद्भुत मंदिर बना हुआ है। ये मंदिर कई पीढ़ियों से आस्था का बड़ा केंद्र है। कहा जाता है कि उत्तरकाशी के काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शनों फल वाराणसी के काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के दर्शनों के फल के बराबर है। काशी विश्वनाथ का ये मंदिर साल भर भक्तों के लिए खुला रहता है। गंगोत्री जाने से पहले बाबा विश्वनाथ के दर्शन काफी जरूरी हैं। पुराणों में उत्तरकाशी को 'सौम्य काशी' भी कहा गया है। पौराणिक कथाओं के मुताबिक उत्तरकाशी में ही राजा भागीरथ ने तपस्या की थी और उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर त्रिदेवों में से एक ब्रह्मा जी ने उन्हें वरदान दिया था। वरदान में भगवान ब्रह्मदेव ने कहा था कि भगवान शिव धरती पर आ रही गंगा को धारण कर लेंगे। तब ये नगरी विश्वनाथ की नगरी कही जाने लगी। कालांतर में इसे उत्तरकाशी कहा जाने लगा।