उत्तराखंड चमोलीsad story of garhwal rifle jawan

गढ़वाल राइफल का वीर..जो देश के लिए लड़ता रहा, वो अब ऐसी बदहाली में जी रहा है

गढ़वाल राइफल के जिस जवान ने हमेशा देश की सेवा की, उसकी जिंदगी में एक हादसा हुआ और अब वो ऐसे हाल में जी रहा है।

garhwal rifle: sad story of garhwal rifle jawan
Image: sad story of garhwal rifle jawan (Source: Social Media)

चमोली: कहते है एक फौजी कभी रिटायर्ड नहीं होता वो जहां भी रहता है हालात का सामना करता है और कभी हिम्मत नहीं हारता। कुछ यही कहानी है उत्तराखंड़ के चमोली जिले के कोट गांव के रहने वाले फौजी दलबीर सिंह नेगी की। जो पिछले पांच साल से अपनी ही जिंदगी से जंग लड़ रहे हैं। लेकिन यह लड़ाई किसी दुश्मन से नहीं बल्कि जिन्दगी के लिए है। सेकंड गढ़वाल राइफल के जवान रहे दलबीर सिंह नेगी साल 2013 में एक हादसे का शिकार हो गए और यही से बदल गई इनकी जिन्दगी की कहानी। उनकी पत्नी इंद्र देवी बताती है कि एक मार्च 2013 को रिश्तेदारी से वापस आते वक्त दलबीर सिंह कंडारीखोड़ के पास पहाड़ी पत्थर के आने से बेहोश हो गए। जिसके बाद उन्हें एमएच अस्पताल रानीखेत ले जाया गया। जहां डॉक्टरों ने उनके कोमा में होने की बात कही। 2013 से 2018 इन पांच सालों में दलबीर सिंह का इलाज चल रहा है। जिसका सारा खर्च उनकी पत्नी उठा रही है।

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परिवार की सबसे बड़ी परेशानी यह है कि बीमारी के चलते सेना ने जवान को रिटायर तो कर दिया है, लेकिन रिटायर होने के आठ महीने बाद भी सैनिक को पेंशन नहीं मिली है। और न ही इलाज के लिए किसी तरह की कोई आर्थिक मदद। सेना की तरफ से पेंशन और इलाज के खर्चा नहीं मिलने से परिवार के सामने आर्थिक परेशानी खड़ी हो चुकी है। पेशे से शिक्षिका इंद्र देवी बताती है कि इस हादसे के बाद पति और दो बच्चों की जिम्मेदारी पूरी तरह से उनके उपर है। अस्पताल में 25 से 30 हजार प्रतिदिन इलाज और तीमारदार का खर्चा है। उन्होंने बताया कि दलबीर को सेना ने रिटायर तो कर दिया, लेकिन 8 माह बाद भी पेंशन नहीं मिल पाई है। ऐसे में दलबीर की देखभाल में दिक्कतें आ रही हैं।उन्होंने बताया कि जनवरी 2018 में सेना की ओर से दलबीर को रिटायर कर दिया गया और साथ में तीमारदार भी हटा दिया गया। ये बात अब उनके लिए एक बड़ी समस्या बन चुकी है।

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इतना ही नहीं फौजी दलबीर सिंह नेगी की देखभाल में भी उनकी पत्नी को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल इंद्रा देवी कंडारीखोड़ प्राइमरी स्कूल में शिक्षिका है। स्कूल की एकल शिक्षिका होने के चलते उन्हें छुट्टी नहीं मिल रही है। जिसकी वजह से हल्द्वानी के अस्पताल में भर्ती दलबीर की देखभाल के लिए भी कोई नहीं है। बता दे कि साल 2013 में जब दलबीर सिंह हादसे का शिकार हुए थे। तो उन्हें बेहोशी की हालत में एमएच अस्पताल रानीखेत ले जाया गया। जहां डॉक्टरों ने उनके कोमा में होने की बात कह बृजलाल अस्पताल हल्द्वानी रेफर कर दिया। महज तीन दिनों में छह लाख का खर्चा होने पर दलबीर सिंह को सेना के दिल्ली स्थित आरआर अस्पताल ले जाया गया, लेकिन हालात में सुधार नहीं होने पर उन्हें जून 2013 में एमएच रानीखेत शिफ्ट कर दिया गया। जिसके बाद अब 13 सितंबर 2018 को उन्हें हल्द्वानी के एक निजी अस्पताल में शिफ्ट किया गया है। लेकिन इतने सालों के जद्दोजहद के बावजूद उनकी स्थिती में कोई सुधार नहीं हुआ है।

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वही उनकी पत्नी महंगे इलाज और बच्चों की जिम्मेदारी को ठीक से उठाने की पूरी कोशिश में हर दिन लगी रहती है। लेकिन बिना पेंशन के उनके लिए इलाज के पैसे जमा करना मुश्किल होते जा रहा है। फौजी दलबीर सिंह नेगी के पेंशन और इलाज के बार में जब सेकंड गढ़वाल राइफल के सूबेदार मेजर रमेश सिंह से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि सेना से रिटायर्ड होने के बाद जवान का ईसीएच कार्ड बना दिया गया है। जिसका नंबर अस्पताल को उपलब्ध कर दिया गया है। निर्धारित प्रावधानों के अनुसार ही अस्पताल का भुगतान होगा। जबकि सैनिक के पेंशन संबंधी कागजात रिकार्ड आफिस में होते हैं। अगर कोई परिजन लेने आएगा तो उन्हें उपलब्ध करा दिए जाएंगे। सेवानिवृत्त होने के बाद परिजनों को खुद दलबीर का तीमारदार रखने की व्यवस्था करनी पड़ेगी।